Rajesh rajesh

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लेखनी प्रतियोगिता -31-Jan-2023 दुलारा जबल

उत्तराखंड की पहाड़ियों पर एक छोटा सा गांव बसा हुआ था। गांव के लोग मिलजुलकर और प्यार मोहब्बत से रहते थे। और एक दूसरे की मदद करने से पीछे नहीं हटते थे।


गांव के पहाड़ के नीचे हर मंगलवार को बाजार लगता था। गांव के लोग मंगलवार का बाजार घूमने के लिए बेसब्री से इंतजार करते थे। गांव और बाजार के रास्ते के बीच में हनुमान जी का एक छोटा सा मंदिर था। मंदिर के पीछे पहाड़ियां और घना जंगल था। 

बाजार घूमते हुए गांव के लोग जरूर हलवाई की दुकान से हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाने के लिए लड्डू बूंदी लेते थे। बाजार घूमने और समान लेने के बाद गांव के लोग अंधेरे कच्चे टेढ़े मेढ़े रास्ते से होते हुए अपने गांव की तरफ जाते हुए, रास्ते में हनुमान जी के मंदिर पर प्रसाद चढ़ाते थे। 

मंदिर के सामने एक जबल नाम का कुत्ता प्रसाद खाने का इंतजार करता रहता था। जबल गोल मटोल तगड़ा सीधा साधा दूध जैसे सफेद रंग का कुत्ता था। जबल सीधा साधा था इस वजह से गांव वाले भी उसे बहुत प्यार करते थे।

 गांव का कोई व्यक्ति अपने परिवार के साथ बैग अटैची लेकर कुछ दिनों के लिए बाहर जाता था, तो जबल इस व्यक्ति और उसके परिवार को पहाड़ से नीचे बस स्टॉप तक छोड़ने जाता था। जब तक बस ऑटो तांगे  में उस का परिवार बैठ कर चले नहीं जाते थे, जब तक जबल उनके आस पास ही रहता था। 

जबल सीधा साधा था इसलिए गांव के बच्चे गांव के मैदान में दौड़ा-दौड़ा कर उसे बहुत परेशान करते थे। गांव का कोई व्यक्ति जब बच्चों को जबल को परेशान करते हुए देखता था तो वहां से बच्चों को भगा देता था। जबल उस व्यक्ति को पूछ हिला हिला कर ऐसे प्यार करता था जैसे उस व्यक्ति को शुक्रिया कर रहा हूं।

गांव का कोई भी बड़ा बुढ़ा गांव के हनुमान  मंदिर तक टहलने जाता था, तो जबल भी मंदिर तक उनके साथ जाता था। जबल मंदिर के पीछे जंगल में जब किसी मोर या खरगोश को देख लेता था तो उसे पकड़ने के लिए दौड़ दौड़ कर उसका पीछा करता था। और जब तक गांव का वह बड़ा बुढ़ा मंदिर पर रहता था, तब तक जबल वही खेलता रहता था।

 जब कभी जबल गांव के मैदान में गांव वालों को नजर नहीं आता था, तो उन्हें मैदान उसके बिना बहुत सूना सूना लगता था।

एक दिन जब जबल पहाड़ की खाई के आसपास दौड़ दौड़ कर खेल रहा था तो उसी समय अचानक खाई में गिरने से जबल की मौत हो जाती है।

जब गांव वाले मंगलवार को हनुमान जी मंदिर में प्रसाद चढ़ाते थे। तो जबल के बिना उन्हें मंदिर का मैदान बहुत सुना सुना लगता था। पूरे गांव में जब कभी घर या चौपाल में जबल की बात चलती थी, तो गांव के लोग बहुत दुखी होते थे।

 मंगलवार के दिन जब लोग मंदिर में प्रसाद चढ़ा रहे थे, तो उसी समय बिल्कुल जबल जैसे रंग रूप का कुत्ते का पिल्ला मंदिर के आगे से प्रसाद खाकर गांव वालों को डर कर मंदिर के पीछे भाग जाता है। 

गांव के लोग कुछ दिन उस पिल्ले पर ध्यान नहीं  देते हैं। लेकिन एक दिन मंगलवार को गांव के लोग हनुमान जी के मंदिर में प्रसाद चढ़ा कर उस पिल्ले को खिलाते हैं तो उस दिन पूरे गांव को उसकी हरकतें देख कर यह महसूस होता है, कि यह तो जबल का ही अक्स है।

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13 Comments

प्रिशा

02-Feb-2023 10:01 PM

बहुत सुंदर 👌

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shweta soni

02-Feb-2023 12:35 PM

बेहतरीन रचना

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